पिथौरागढ़। पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर पिथौरागढ़ के सभी कर्मचारी और शिक्षक लामबंद होने लगे हैं। कर्मचारियों ने अपनी आवाज बुलंद करने के लिए जिले के सभी विकास खंडों में कार्यकारिणी का गठन कर लिया है।
एनएमओपीस के जिलाध्यक्ष बिजेंद्र लुंठी और जिला मंत्री मोहित बिष्ट ने बताया कि प्रांतीय अध्यक्ष जीतमणी पैन्यूली की संस्तुति के आधार पर विकास खंड विण में दीपा रावत को अध्यक्ष, अमन बोरा को सचिव, मूनाकोट में योगेश डिमरी को अध्यक्ष, अशोक ठकुराठी को सचिव, विकास खंड कनालीछीना में पंकज तिवारी को अध्यक्ष, गोकुल मखोलिया को सचिव, मुनस्यारी में नवल मर्तोलिया को अध्यक्ष नीलम कोरंगा को सचिव, डीडीहाट में भूपाल चौहान को अध्यक्ष, बलवंत बोरा को सचिव पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
वहीं बेरीनाग में अशोक कुमार पंत को अध्यक्ष, हिमांशु उपाध्याय को सचिव, गंगोलीहाट में जीवन नेगी को अध्यक्ष, हेम पाठक को सचिव, धारचूला में गिरधर सिंह रौतेला को अध्यक्ष, रविन्द्र सिंह धामी को सचिव की जिम्मदारी सौंपी गई है। बताया की प्रांतीय आवाहन पर पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर जिला मुख्यालय में 11 फरवरी को होने वाले धरने में जिले के सैकड़ों कर्मचारियों और शिक्षकों द्वारा प्रतिभाग किया जाएगा। संगठन द्वारा लोकसभा चुनाव में वोट फ़ॉर ओपीएस की रणनीति अपनाई जाएगी।
विगत दिनों शासन स्तर पर हुई वार्ता में हमारे द्वारा प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली की मांग रखी गयी थी, लेकिन सरकार ने उल्टा कर्मचारियों को एनपीएस की जानकारी के संबंध में वर्कशॉप आयोजित करने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ दिया है। जिसका पुरजोर विरोध किया जाएगा। लुंठी ने बताया कि आंदोलन को अगली कड़ी में अब ११ फरवरी को जिला मुख्यालय में एक दिवसीय धरने का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें जिले से भी सैकड़ो की संख्या में कर्मचारियों और शिक्षकों द्वारा प्रतिभाग किया जाएगा।
कहा कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर अब सभी कर्मचारी और शिक्षक मुखर होने लगे है। सरकार ने कर्मचारियों की पेंशन बंद कर उनके बुढ़ापे की लाठी छीन ली है। अपना पूरा जीवन सरकारी सेवा को अर्पित करने के बाद आज जो भी कर्मचारी या शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे है, उन्हें नाममात्र की पेंशन मिल रही है। वही दूसरी तरफ चुनाव जीतकर मात्र सपथ ग्रहण करने के बाद एक सांसद और विधायक पुरानी पेंशन का हकदार बन गया है। कहा कि एक देश में दो विधान कतई स्वीकार योग्य नहीं है। जिसके विरोध में आगामी चुनावों में वोट फ़ॉर ओपीएस की रणनीति अपनाई जाएगी।