अब भारत के टाइगर की कंबोडिया में सुनाई देगी गर्जना, कंबोडिया में 2016 से बाघ को विलुप्त मान लिया गया

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हल्द्वानी। पिछले साल कंबोडिया और भारत के बीच एक समझौता हुआ था.इसी समझौते के तहत कंबोडिया को उम्मीद है कि उसे भारत से चार बाघ लाने में मदद मिलेगी। इसका उद्देश्य कंबोडिया में बाघों की आबादी को पुनर्जीवित करना है।


भारत में चीते 70 साल पहले विलुप्त हो चुके हैं लेकिन सरकार अपने बहुचर्चित प्रोजेक्ट चीता के जरिए मध्य प्रदेश में दोबारा चीतों को बसाने की मुहिम चला रही है इसके लिए अफ्रीका से चीते लाए गए थे। कुछ इसी तरह कंबोडिया में कोशिश शुरू हुई है।


कंबोडिया के जंगल कभी बड़ी संख्या में इंडोचाइनीज बाघों का वास स्थल हुआ करते थे, संरक्षणवादियों का कहना है कि बाघों और उनके शिकार के बड़े पैमाने पर अवैध शिकार ने उनकी संख्या को खत्म कर दिया है।2007 में कंबोडिया में बाघ को आखिरी बार एक कैमरा ट्रैप से देखा गया था वर्ष 2016 में कंबोडिया में बाघों को विलुप्त घोषित कर दिया था। समाचार एजेंसी एजेंसी फ्रांस प्रेस (एएफपी) और जर्मनी डच वले ने इससे जुड़े समाचार दिए हैं। इसके अनुसार एक नर और तीन मादा 2024 के अंत में कंबोडिया पहुंच सकते हैं। इन बाघों को जंगल में छोड़े जाने से पहले उन्हें वातावरण के लिए अनुकूल बनाने के लिए पश्चिमी कोह कांग प्रांत में टाटाई वन्यजीव अभयारण्य के अंदर 90 हेक्टेयर के जंगल में भेजा जाएगा।

बाघों को लेकर चल रही तैयारी

टाइगर को लेकर तैयारी चल रही है। वन्यजीवों, विशेषकर हिरण और सूअर जैसे बाघों के शिकार वाले जानवरों की निगरानी के लिए कार्डामॉम पर्वत के रिजर्व में एक किलोमीटर के अंतराल पर 400 से अधिक कैमरे लगाने का काम शुरू किया गया है।वहां कैमरों से मिली जानकारी “बाघों के प्रजनन में मदद करेगी.” उन्होंने बताया कि अगर परियोजना सुचारू रूप से चलती है तो अगले पांच सालों में बारह और बाघों लाने की योजना है।

कंबोडिया में टाइगर कैसे विलुप्त हुए ?
जंगलों की कटाई और अवैध शिकार ने पूरे एशिया में बाघों की संख्या को करीब-करीब खत्म कर दिया है। कंबोडिया में लगातार हो रहे विकास के कारण कई जंगल काट दिए गए और रिहाइश इतनी बढ़ने लगी कि बाघों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा। इस कारण उन्हें छोटे निवास स्थलों में अपना गुजारा करना पड़ा जिससे उनकी सेहत और प्रजनन क्षमता पर असर पड़ा। जैसे-जैसे जंगल कम होते गए कंबोडिया से बाघ भी गायब होते चले गए। एशियाई देश कंबोडिया, लाओस और वियतनाम सभी ने करीब बाघों की अपनी मूल आबादी खो दी है, जबकि माना जाता है कि म्यांमार के जंगलों में केवल 23 बाघ बचे हैं। कंबोडिया और भारत ने 2022 में बाघों और उनके आवासों को बहाल करने पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

भारत में बाघों की संख्या 3622 बाघ
भारत में बाघ संरक्षण अभियान के बाद बेहतर नतीजे सामने आए हैं। भारत में 2018 में बाघों की संख्या 2,967 थी। भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट के मुताबिक देश में सबसे अधिक (785) बाघ मध्य प्रदेश में हैं. इसके बाद कर्नाटक का नंबर है, जहां 2022 में बाघों की कुल संख्या 563 रही। पिछले चार सालों में करीब 24 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद भारत में दुनिया के 75 फीसदी बाघ रहते हैं.

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