उत्तराखंड । द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा वैद्यनाथ मंदिर के गर्भगृह में मरम्मत के नाम पर की गई छेड़छाड़ को लेकर विवाद गहरा गया है। मंदिर के प्रबंधक और संबंधित अधिकारियों द्वारा इस कार्य को बिना वरीय अधिकारियों की अनुमति और पुरोहितों की सहमति के किया गया है, जिससे पुरोहितों में गहरी नाराजगी पैदा हो गई है। मामले की जांच शुरू हो गई है और इस संदर्भ में अनुमंडल पदाधिकारी ने डीसी को रिपोर्ट सौंपी है।
धनबाद में हुई इस घटना के बाद पुरोहितों का गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है। पंडा धर्मरक्षिणी सभा की आपात बैठक में इस कृत्य पर कड़ी आपत्ति जताते हुए दोषियों पर शीघ्र कार्रवाई की मांग की गई। सरदार पंडा गुलाब नंद ओझा ने कहा कि बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के साथ इस प्रकार की छेड़छाड़ सनातन धर्म और परंपराओं के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इस मामले की पहले विस्तृत विवेचना होनी चाहिए।
अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय पदाधिकारी विनोद दत्त द्वारी और दुर्लभ मिश्र ने भी घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि मंदिर के गर्भगृह में किसी प्रकार का कार्य कराने का अधिकार केवल मंदिर प्रबंधन को नहीं, बल्कि पुरोहितों और धर्माचार्यों से परामर्श के बाद ही इसे किया जा सकता है। यह कार्य उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन भी है, क्योंकि पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के गर्भगृह में किसी प्रकार की छेड़छाड़ न करने के निर्देश दिए थे।
पंडा धर्मरक्षिणी सभा के पूर्व उपाध्यक्ष मनोज मिश्रा ने इस घटना को लेकर कहा कि बाबा वैद्यनाथ मंदिर हिंदू धर्म के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है, और लाखों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। उन्होंने इसे सनातन समाज पर सीधा हमला बताया और कहा कि इस प्रकार की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने घटना की स्वतंत्र एजेंसी से जांच की मांग की और कहा कि सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप कर शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए।
हालांकि, यह घटना तब सामने आई जब मंदिर के गर्भगृह में किए गए कार्यों की जानकारी किसी भी वरिष्ठ अधिकारी को नहीं दी गई थी, जिससे यह सवाल उठता है कि इतना बड़ा कार्य बिना किसी आदेश और बिना किसी अधिकार के क्यों किया गया। इस कृत्य को लेकर मंदिर प्रशासन, महंत और पंडा धर्मरक्षिणी सभा को प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए और घटना की स्वतंत्र जांच कराई जानी चाहिए।
हालांकि, यह घटना तब सामने आई जब मंदिर के गर्भगृह में किए गए कार्यों की जानकारी किसी भी वरिष्ठ अधिकारी को नहीं दी गई थी, जिससे यह सवाल उठता है कि इतना बड़ा कार्य बिना किसी आदेश और बिना किसी अधिकार के क्यों किया गया। इस कृत्य को लेकर मंदिर प्रशासन, महंत और पंडा धर्मरक्षिणी सभा को प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए और घटना की स्वतंत्र जांच कराई जानी चाहिए।